चलते रहो, चलते रहो , बाधाओं में, विपदायों में, रुकना नहीं
२ अक्टूबर २००९ को दिल्ली में परम पूज्यनीय सरसंघचालक जी का बौधिक था. उस अवसर का गीत था :
चरैवेति चरैवेति........................
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चरैवेति चरैवेति यही तो मन्त्र है अपना
नहीं रुकना नहीं थकना सतत् चलना सतत् चलना
यही तो मन्त्र है अपना शुभंकर मन्त्र है अपना
नहीं रुकना नहीं थकना सतत् चलना सतत् चलना
यही तो मन्त्र है अपना शुभंकर मन्त्र है अपना
हमारी प्रेरणा भास्कर है जिनका रथ सतत् चलता
युगों से कार्यरत है जो सनातन है प्रबल उर्जा
गति मेरा धरम है जो भ्रमण करना भ्रमण करना
यही तो मन्त्र है अपना शुभंकर मन्त्र है अपना...
युगों से कार्यरत है जो सनातन है प्रबल उर्जा
गति मेरा धरम है जो भ्रमण करना भ्रमण करना
यही तो मन्त्र है अपना शुभंकर मन्त्र है अपना...
हमारी प्रेरणा माधव हैं जिनके मार्ग पर चलना
सभी हिन्दू सहोदर है ये जन जन को सभी कहना
स्मरण उनका करेंगे और समय दे अधिक जीवन का
यही तो मन्त्र है अपना शुभंकर मन्त्र है अपना...
सभी हिन्दू सहोदर है ये जन जन को सभी कहना
स्मरण उनका करेंगे और समय दे अधिक जीवन का
यही तो मन्त्र है अपना शुभंकर मन्त्र है अपना...
हमारी प्रेरणा भारत है भूमि की करें पूजा
सुजला सुफ़ला सदा स्नेहा यही तो रूप है उसका
जियें माता के कारण हम करें जीवन सफ़ल अपना
यही तो मन्त्र है अपना शुभंकर मन्त्र है अपना...
सुजला सुफ़ला सदा स्नेहा यही तो रूप है उसका
जियें माता के कारण हम करें जीवन सफ़ल अपना
यही तो मन्त्र है अपना शुभंकर मन्त्र है अपना...
यही तो मन्त्र है अपना...
यही तो मन्त्र है अपना...
यही तो मन्त्र है अपना...
यही तो मन्त्र है अपना...
यही तो मन्त्र है अपना...