Tuesday, 21 September 2010

Being Brave - बहादुरी क्या है ?

वीरता - बहादुरी क्या होती है

मैं सोचता हूँ की जब गुरु तेग बहादुर के शिष्य भाई मतिदास और भाई सतिदास (http://en.wikipedia.org/wiki/Bhai_Mati_Das ) को इस्लाम नहीं कबूलने के लिए आरे से काटा गया और खौलते हुए तेल में उबाल दिया गया, पर वे लोग शांत चित्त से जपजी का पाठ करते रहे।

अन्य हिन्दुओं (मैं सिख / हिंदू भेद नहीं करता) को चरखी चढा दिया गया। कुछ को रुई में लपेट कर आग लगा दी।

पर फिर भी बहुत कम लोग मुसलमान बने। भारत के अलावा कोई अन्य देश नहीं है जहाँ मुसलामानों ने इतने अत्याचार, इतने समय तक किए, और फिर भी पूरा देश मुसलमान नहीं बना।

गोमान्तक (Goa) में Christian Missionaries ने माता पिता को बाँध कर उनके सामने उनके बच्चों के अंग काट काट कर उनकी हत्या की। बच्चे को उल्टा लटका के बीच से शरीर को फाड़ दिया, कितना पीड़ा दायक रहा होगा।

मैं सोचता हूँ, कि कैसे वे लोग शरीर की पीड़ा से ऊपर उठ सके और धर्म नहीं छोड़ा ? कैसे कर पाए वे लोग ?

मुझे व्यक्तिगत रूप से अनुभव है Third Degree Burns का, बहुत जलता है। मैं उस समय भी अस्पताल जाते हुए यही सोच रहा था की मैं कितनी थोडी सी पीड़ा में विचलित हो रहा हूँ , हमारे पुरखों ने क्या क्या नहीं झेला तो आज हम हैं।

मुझे जब भी कोई चोट लगती है, मैं यही सोचता हूँ, की कैसे कोई रोम रोम से यह विश्वास कर पाते हैं की शरीर तो नश्वर है, क्षय तो होगा ही, और शरीर से ऊपर उठ पाते हैं।

एक संकेत मिलता है श्री रामचरितमानस में, बाल काण्ड में। श्री सीता जी स्वयंवर प्रसंग है, सभी राजा असफल हो कर, श्री हीन हो कर बैठ चुके हैं। राजा जनक दुखी हैं,

"वीर विहीन महि मैं जानी" (इस धरती पर अब वीर नहीं हैं, ऐसा वे कहते हैं )

ऐसे में, गुरु विश्वामित्र का आदेश होता है :

"उठो राम भंजहु भव चाप,
मेटहु तात जनक परिताप "

हे राम उठो और धनुष (चाप) को तोड़ दो (भंजन कर दो), और पुत्र (तात) राजा जनक का दुःख मिटा दो

प्रभु श्री राम, उठ कर, गुरूजी से आशीर्वाद लेते हैं, और धनुष की और चलते हैं

"हर्ष विषाद कछु उर आवा "

(प्रभु श्री राम के हृदय में न तो हर्ष है, न विषाद, अपने दायित्व का निर्वाहन कर रहे हैं)

पर दायित्व का निर्वाहन है, बिना किसी बोझ के, यह कैसे होता है ??

सुधि पाठक बंधू कृपया अपने विचार रखें

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