भारतीय दर्शन की यह विशेषता रही है कि भिन्न भिन्न सिद्धान्त एक साथ स्थापित रहें हैं।
एक मनीषी हुए हैं :- चार्वाक
आज जब कि विश्व भर में आर्थिक मंदी कि छाया है, उनका सिद्धान्त विचारणीय है।
"यतं जीवेत, सुखें जीवेत,
ऋणं कृत्वा, घृतं पिबेत "
जब तक जियो, सुख से जियो,
उधार ले कर, घी पियो
संभवतः, अमरीकी पहले से ही इस सिद्धान्त का पालन कर रहे थे :-)
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