मित्र का लालन पालन भी मेरी तरह एक वैष्णव परिवार में हुआ।
एक शब्द उन्होंने कहा जो हमारे दादा जी कहते थे।
म्लेच्छ।
बहुत दिनों बाद सुना।
म्लेच्छ - यानी निकृष्टतम से नीचे कुछ होता हो तो।
म्लेच्छ - यानी अगर आप बिना नहाये रसोई में घुसे तो जो गाली सुन ने को मिलती।
म्लेच्छ - यानी अगर आप पूजा किए बिना खाने का सोचें तो जो गाली सुन ने को मिलती।
म्लेच्छ - यानी यह बताया जाना कि आप उस परिवार के योग्य नहीं हैं, जिसमे आप जन्मे हैं।
म्लेच्छ - यानी वर्ण व्यवस्था कि सबसे निचली पायदान से नीचे वाला प्राणी - यानी अ हिंदू
बचपन में एक कविता याद करायी थी पिताजी ने, secular schools एवं पाठयक्रम के चलते अब के बालक वीर रस के कवि भूषण कि इस कविता से अनभिज्ञ होंगे।
दावा द्रुम दंड पर,
चीता मृग झुंड पर,
भूषण वितुण्ड पर,
जैसे मृगराज है।
तेज तम अंस पर,
कान्हा जिमी कंस पर,
त्यों म्लेच्छ वंश पर,
शेर शिव राज है।
यह कविता कवि भूषण ने शिवाजी महाराज के सम्मान में लिखी थी।
या मैं पूजूं शिवा को, या पूजूं छत्रसाल
अब यह शब्द गायब सा हो गया है। माता पिता बच्चों को टोकते ही नहीं हैं। स्वयं ही rootless हैं, बच्चों को क्या roots देंगे।
'म्लेच्छ - यानी निकृष्टतम से नीचे' के भाव में मैंने इसे कई बार प्रयोग होते और स्वयं प्रयोग किया है।
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