Friday, 19 February 2010

शक्ति और क्षमा - कवि: रामधारी सिंह “दिनकर”

शक्ति और क्षमा
कवि: रामधारी सिंह “दिनकर”


क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ सुयोधन तुमसे
कहो कहाँ कब हारा?


क्षमाशील हो ॠपु-सक्ष
तुम हुये विनीत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही


अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है


क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल है
उसका क्या जो दंतहीन
विषरहित विनीत सरल है


तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिंधु किनारे
बैठे पढते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे प्यारे


उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नही सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से


सिंधु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता गृहण की
बंधा मूढ़ बन्धन में


सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
संधिवचन सम्पूज्य उसीका
जिसमे शक्ति विजय की


सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है

2 comments:

  1. Bad behavior

    Bad behavior and irrational decisions are almost always caused by fear. If you want to change the behavior, address the fear.

    And yet we don't.

    Instead, we impose an embargo or throw someone in prison. We put a letter in the permanent file or put the employee on a performance improvement plan. We walk away from a prospect or blame a lack of sales on our advertising.

    "What are you afraid of?" is not just a great line for a movie trailer. It's a shortcut in understanding what motivates.

    - Seth Godin

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  2. What is the fear that prompts you to write as anonymous.

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