इस बार नहीं
प्रसून जोशी
इस बार नहीं
इस बार जब वह छोटी सी बच्ची,
मेरे पास अपनी खरोंच ले कर आएगी
मैं उसे फू फू कर नहीं बहलाऊँगा
पनपने दूंगा उसकी टीस को
इस बार नहीं
इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखा देखूँगा
नहीं गूंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूंगा , उतारने दूंगा अन्दर गहरे
इस बार नहीं
इस बार मैं न मरहम लगाऊँगा
न ही उठाऊँगा रुई के फाहे
और न ही कहूँगा कि तुम आँखें बंद कर लो ,
गर्दन उधर कर लो मैं दवा लगता हूँ
देखने दूंगा सबको हम सबको खुले नंगे घाव
इस बार नहीं
इस बार जब उलझने देखूँगा, छट पटाहट देखूँगा
नहीं दौडूंगा उलझी डोर लपेटने
उलझने दूंगा जब तक उलझ सके
इस बार नहीं
इस बार कर्म का हवाला दे कर नहीं उठाऊँगा औज़ार
नहीं करूंगा फिर से एक नयी शुरुआत
नहीं बनूँगा मिसाल एक कर्मयोगी की
नहीं आने दूंगा ज़िन्दगी को आसानी से पटरी पर
उतारने दूंगा उसे कीचड में , टेढे मेढे रास्तों पे
नहीं सूखने दूंगा दीवारों पर लगा खून
हल्का नहीं पडने दूंगा उसका रंग
इस बार नहीं बनने दूंगा उसे इतना लाचार
कि पान की पीक और खून का फर्क ही ख़त्म हो जाये
इस बार नहीं
इस बार घावों को देखना है
गौर से थोडा लम्बे वक्त तक
कुछ फैसले और उसके बाद हौसले
कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है
प्रसून जोशी
अमिताभ बच्चन की आवाज़ में पढ़ी गयी इस कविता को सुनें.
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